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वर्णी वाणी
और अनन्त सुख है। इन गुणों का परस्पर अविनाभावी सम्बन्ध है । अतएव हम लोगों को उस आत्मसत्त्व में बढ़तम श्रद्धा द्वारा अपने को सांसारिक दुःखों से बचाना चाहिये।
१६. जिस मनुष्य के आत्मसत्त्व में दृढ़ श्रद्धा है वही संसार भर के प्राणियों में उत्कृष्ट है।
१७. जिस कार्य को एक मनुष्य कर सकता है, उसीको यदि दुसरा न कर सके तो समझो कि उसमें आत्मविश्वास की कमी है।
१८. जिन्हें अपने आत्मबल पर विश्वास नहीं, उन्हें संसार सागर को तो बात जाने दो, गाँव की मेंढकतरण तलैया भी गहरी है।
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