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________________ आत्मशक्ति १. आत्मा की शक्ति अचिन्त्य है, उसे विकास में लानेवाला यही आत्मा है । २. आज संसार में विज्ञान की जो अद्भुत शक्ति प्रत्यक्ष हो रही है यह आत्मा ही का विकास है । शान्ति का जो मार्ग अगम में पाया जाता है वह भी मोक्षमार्ग के आविष्कारकर्ता की दिव्यध्वनि द्वारा परम्परया आया हुआ है । अतः सर्व विकल्पों और मायापिण्ड को छोड़कर अपनी परगतिको उपयोग में लाओ। उसका बाधक यदि किसी को समझते हो तो उसे हटाओ । ३. शरीर की परिचर्या में ही आत्मशक्ति का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। इसकी परिचर्या से आज तक जो दुर्दशा हुई है वह इसी का महाप्रसाद है । यह सर्वथा अनुचित हैहमारी मोहान्धता है, जो हमने इस शरीर को अपनाया और उसके साथ भेदबुद्धि को त्याग कर निजत्व की कल्पना की । हम व्यर्थ ही निजत्व की कल्पना कर शरीर को दुःख का कार मान रहे हैं । यह तो पत्थर से अपने शिर को फोड़कर पत्थर से शत्रुता कर उसके नाश करने का प्रयासमात्र है । वास्तव में पत्थर जड़ है, उसे न किसी को मारने की इच्छा है और न Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003997
Book TitleVarni Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1950
Total Pages380
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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