________________
पारिभाषिक शब्दकोष
फूलचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री
कल्याण का मार्ग-
उदासीन निमित्त -- पृष्ठ क्रमांक २, वाक्य क्रमांक ३, जो
A
कार्य की उत्पत्ति में सहकार करते हैं वे उदासीन निमित्त कहलाते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं। एक वे हैं जो गति, स्थिति, वर्तना और अवगाहन रूप प्रत्येक कार्य के प्रति समान रूप से कारण होते हैं । ऐसे कारण द्रव्य चार हैं- द्रव्य, श्रवम द्रव्य, काल द्रव्य और आकाश द्रव्य । इन चारों द्रव्यों के क्रम से गति, स्थिति, वर्तना और अवगाहना ये चार कार्य हैं जो इनके निमित्त से होते हैं। दूसरे वे हैं जो कार्यभेद के अनुसार यथा सम्भव बदलते रहते हैं। यथा-घटोत्पत्ति में कुम्हार निमित्त है और अध्यापन कार्य में अध्यापक निमित्त है आदि । ये दोनों प्रकार के निमित्त उदासीन इसलिये कहलाते हैं कि ये किसी भी कार्य को बलात् उत्पन्न नहीं करते किन्तु कार्य की उत्पत्ति में सहकारमात्र करते हैं।
चरमशरीरादिक - पृ० २, वा० ३, वह अन्तिम शरीर जिससे मुक्ति लाभ होता है। आदि पद से कर्मभूमि आदि का ग्रहण किया है ।
कषाय-पृ० २, वा० ६, मुख्य कषाय चार हैं- क्रोध, मान, माया और लोभ |
जीव- पृ० ३, वा०, जिसमें चेतना शक्ति पाई जाती है वह जीव है | चेतना से मुख्यतया ज्ञान, दर्शन लिये गये हैं ।
1
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org