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वर्णी-वाणी
सुख को चाहसुख चाहत सब जीव हैं देख जगत जंजाल । ज्ञानी मूर्ख अमीर हो या होवे कंगाल ॥७३।। भवितव्यहोत वही जो है सही छोड़ो निज हंकार ।
व्यर्थ वाद के किये से नशत ज्ञानभण्डार ||७४।। दिव्य सन्देशदेख दशा संसार की क्यों नहिं चेतत भाय ।
आखिर चलना होयगा क्या पण्डित क्या राय ॥७५।। राम राम के जाप से नहीं राम मय होय । घट की माया छोड़ते आप राम मय होय ॥७६।।
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