________________
( २९ )
संग्रहात्मक ग्रन्थ – “ वर्णों द्वितीय संस्करण है । इसके सन्तप्त जीवों को चिरकाल
1
शास्त्राध्ययन, कुशलता, श्रादि प्रशस्त गुणों के यह एक श्राश्रय हैं। समय समय पर इनके द्वारा दिये गये सदुपदेशों का वाणी" प्रथम संस्करण प्रकाशित हो चुका। यह श्रवण तथा अध्ययन से सांसारिक दुःखों से तक के लिये सुख शान्ति का लाभ होगा ऐसा पं० नरेन्द्रकुमारजी ने इसका संकलन एवं सम्पादन कर प्रकाशित कराकर किया है। इनके इस उत्साह को देखकर द्वारा समाज का उत्तरोत्तर श्रधिकाधिक
मेरा दृढ़ विश्वास है ।
समाज का महान् उपकार मेरा विश्वास है कि इनके कल्याण होगा ।
२-५-४९
मुकुन्दशास्त्री खिस्ते, साहित्याचार्य प्रो० गवर्नमेण्ट संस्कृत कालेज, काशी
श्री नरेन्द्रजी के द्वारा संग्रहीत और सम्पादित 'वर्णीबाणी' देखने का सौभाग्य मुझे मिला । 'वर्णी-वाणी' को श्राद्योपान्त पढ़कर चित्त में बहुत श्रानन्दानुभूति हुईं। आज के इस संघर्षमय युग में यह पुस्तक मुझे 'शान्ति के दूत' की तरह प्रतीत हुई ।...
S
दाव-पेंच खेलकर मनुष्य सांसारिक सफलता की अन्तिम सीढ़ी पर भले ही पहुँच जाय, फिर भी कुछ ऐसा बच रहता है जिसके लिये वह पिपासाकुल रह जाता है । और वह पिपासा किसी प्रकार शान्त होना नहीं चाहती ।
जो ज्ञानी है, कहिये जो भाग्यवान् है, वह किसी 'सरोवर' की खोज में लग जाता है । सरोवर तक चाहे अपने जीवन काल में न भी पहुँचे, चैन उसे मिलने लगती है, जीवन फिर हाहाकारमय नहीं रहता ।
यह पुस्तक उसी सरोवर के मार्ग की ओर ले जानेवाली है । ' छोटे-छोटे वाक्य हैं, बिलकुल सरल और सुबोध । कहीं तो लगता है कि जैसे बालक ने कुछ कह दिया है अपनी निश्छल भाषा में और
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org