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( २८ ) ज्योति को प्रज्वलित कर रखा है जो भारत के लिए गौरव की बात है । इसके विचारों का प्रचार सम्पूर्ण भारत ही नहीं किन्तु विश्व में होना चाहिये । विदेशी भाषा में यदि किसी ने लिखी होती तो शायद इसका प्रचार अधिक होता। अच्छा हो ग्रन्थमालावाले इसे कई भाषाओं में प्रकाशित करें । वर्णाजी से भी मैं आशा करूँ कि वे भावी भारत के जैनों के लिए कोई व्यवस्था देकर जैन संस्कृति का गौरव बढ़ावेंगे ।
मुनि कान्तिसागर
____ 'वर्णीवाणी' संकलयिता वि० नरेन्द्र जैन
"श्री नरेन्द्रकुमारजी जैन की 'वर्णावाणी' मैंने पढ़ी। इस पुस्तक में भी नरेन्द्रकुमारजी ने जैनधर्म के प्रकांड पडित, जैनियों के गुरुदेव पूज्य पं. गणेशप्रसादजी वर्णी के विचारों का संकलन किया है । पूज्य व जी की आध्यात्मिकता से जैन मतावलम्बी तो सभी परिचित हैं। उनके मुखारविन्द से उनके उपदेश सुनने का अवसर सबको प्राप्त नहीं हो सकता। अतः उनके निर्मल विचारों को इस पस्तक में संकलित करके भी नरेन्द्रकुमारजी ने उन्हें सर्वसुलभ बना दिया है। इसके लिये वह जनता के धन्यवाद के पात्र हैं।"
सन्तप्रसाद टण्डन :
परीक्षामन्त्री हिन्दी साहित्य साहित्य सम्मेलन प्रयाग
२८.४.४८ श्रीमान् माननीय पं० गणेशप्रसादजी वर्णी महोदय उन व्यक्तियों में से हैं जिन्होंने रागदेष पर विजय प्राप्त कर निरन्तर आत्म चिन्तन से वास्तविक अात्म सुख को प्राप्त किया है। परम सौभाग्य से मेरा भी इनके साथ चिर परिचय रहा। परम दयालुता, परोपकारिता, शान्ति प्रियता,
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