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वर्णी-वाणी
२७.
वह भोजन नहीं करता था तथा जिस दिन बाईजी रेल पर जाती थीं तब बाईजी का ताँगा जब तक न चले तब तक खड़ा रहता था और जब ताँगा चलने लगे तब वह फिर लौट आता था, पर हमारे पास कभी भी नहीं आता था । जब बाईजी बरुआ सागर से आ जाती तब बाईजी के पास आ जाता था । एक दिन वह दूध रोटी नहीं खाने लगा । बाईजी ने बहुत कहा, नहीं खाया | दो दिन कुछ नहीं खाया । बाईजी उसे णमोकार मन्त्र सुनाने लगीं । प्रतिदिन णमोकार मन्त्र सुनकर नीचे चला जाता था। तीसरे दिन उसने णमोकार मन्त्र सुनते-सुनते प्राण छोड़ दिये । मरकर कहाँ गया, हम नहीं जानते परन्तु इतना जानते हैं कि बाईजी को वह अपना रक्षक समझता था, क्योंकि बाईजी ने उसकी रक्षा की थी। हमारी थप्पड़ से हमें रक्षक नहीं मानता था। कहने का तात्पर्य यह है कि पशु भी अपने स्थिति करने वाले को समझते हैं, अतः पशुओं में जब यह ज्ञान है तब मनुष्यों का तो कहना ही क्या है। इसलिए मानवों का स्थितिकरण सम्यग्दर्शन का एक प्रमुख अङ्ग है ।
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