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जैन समाज के लब्ध प्रतिष्ठ विद्वानों में ८० प्रतिशत विद्वान बुन्देलखण्ड के ही हैं। ___कहना होगा कि बुन्देलखण्ड की धार्मिक जागति के कारण सोते हुए बुन्देलखण्ड के कानों में शिक्षा एवं जागृति का मन्त्र फूकनेवाले और बुन्देलखण्ड के सद्गृहस्थोचित आचार-विचार के संरक्षक यदि हैं तो वे एकमात्र वर्णीजी ही हैं। मानवता की मूर्ति___ वर्णीजी के जीवन में सरलता और भावुकता ने जो स्थान पाया है वह शायद ही औरों को देखने को मिले किसी के हृदय को दुःख पहुंचाना उनकी प्रकृति के प्रतिकूल है यही कारण है कि अनेक व्यक्ति उन्हें आसानी से ठग लेते हैं। कड़े शब्दों और व्यङगात्मक भाषा का प्रयोग कर दूसरों को कष्ट पहुंचाना उन्होंने कभी नहीं सीखा। हित की बात आसानी से मधुर शब्दों की सरल भाषायें कह कर मानना न मानना उसके ऊपर छोड़कर अपने समय का सच्चा सदुपयोग ही उन्हें प्रिय है।
आपत्तियों से टक्कर लेना, विपत्ति में कर्म न छोड़ना, दूसरों का दुःख दूर करने के लिये असहायों को सहायता, अज्ञानियों को ज्ञान और शिक्षाथियों को सब कुछ देना इनके जीवन का ब्रत है। ___दाव-पेंच की बातों में जहाँ वर्णीजी में बालकों जैसा भोलापन है वहाँ सुधारक कार्यों में युवकों जैसी सजीव कान्ति और बयोवृद्धों जैसा अनुभव भी है। संक्षेप में वांजी मानवता की मूर्ति हैं अतः उसी का सन्देश देना उन्होंने अपना कर्तव्य समझा है।
मेरी शुभकामना है कि वर्णीजी चिरायु हो, मानवता का सन्देश लिये विश्व को सदा कल्याण पथ-प्रदर्शन करते रहें।
वि० "नरेन्द्र" जैन - स्नातक-श्री स्याद्वाद दि० जैन संस्कृत महाविद्यालय,
__काशी
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