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जड़वाद की उपासना
राजा भोज का उपाख्यान इस बात का द्योतक है कि वह ज्ञान के प्रभाव से स्वयं रक्षित रहे तथा उनका विरोधी जो मुञ्ज था वह भी उनका हितैषी बन गया और भोज को राज्य का अधिपति बना कर आप संसार से विरक्त हो गया । इसी तरह हम लोगों को उचित है कि संसार को अनित्य जान अपना वैभव पत्रादिकों को देकर मोक्षमार्ग में लगना चाहिए । जो गृहस्थी छोड़ने में असमर्थ हैं उन्हें चाहिये कि अपनी सन्तति को सुशिक्षित बनाने का प्रयत्न करें और जो विशेष धन सम्पन्न हैं उन्हें चाहिये कि वे दूसरों के बालकों को सुशिक्षित बनाने में अपने द्रव्य का सदुपयोग करें ।
"अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम् । उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ॥”
"यह मेरा है, यह पराया है" ऐसी गणना करना श्रोछे चित्तवाले मनुष्यों का काम है । किन्तु जिनका चरित उदार हैं वे पृथिवीमात्र को अपना कुटुम्ब मानते हैं !" वास्तव में ऐसे उदारचरितवाले ही प्रशस्त हैं परन्तु इस मोहमय जगत् में बहुत प्राणी तो मोह मदिरा में इतने मन हैं कि मोक्षमार्ग की ओर उनका जरा भी लक्ष्य नहीं । यही कारण कि वे दूसरों के बालकों की बात तो जाने दीजिये अपने ही बालकों को
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