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हो, चाहे देशव्रती हो, चाहे महाव्रती हो, चाहे केवली हो, चाहे देव हो, चाहे सिद्ध हो सभी पर्यायों में पाया जाता है।
यह धर्म जीव को अजीवों से भिन्न करने में साधक है, अनादि निधन है, इसके बल से ही जीव की सत्ता है, किन्तु इसको जानकर हमें यह अभिमान नहीं करना चाहिये कि सिद्ध में भी जोवत्व है, हम में भी जीवत्व है अतः हम तुच्छ क्यों ? जैसे सिद्ध भगवान सर्व मान्य हैं उसी तरह हमें भी सर्वमान्य होना चाहिये।
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