________________
२६५
जड़वाद की उपासना मनुष्य बनाने की चेष्टा नहीं करते। वास्तव में वह मनुष्य मनुष्य नहीं जो अपने बालकों को मनुष्य बनाने की चेष्टा नहीं करते । जिस धन का धनी बालक को बनाना चाहते हो यदि पहले उसे इस योग्य न बनाया गया कि वह धन का उपयोग कैसे करे तो इससे क्या लाभ ? जैसे कल्पना करो कि कोई
आदमी अन्नादि द्रव्यों के स्वाद का भोक्ता बनना चाहे परन्तु मलेरिया ज्वर के निवारणार्थ कोई प्रयत्न न करे तो क्या वह उस अन्न के स्वाद को पा सकता है ? कभी नहीं । इसी प्रकार प्रकृत में जानना चाहिये ।। ___ आज कल लोग ज्ञान का प्रमाव और महत्व बहुत ही कम समझते हैं इसीलिये जड़वाद को मानने वाले हैं, जड़ ही से प्रेम है। बालकों से जो प्रेम है वह केवल उनके शरीर से प्रेम है अतः नाना प्रकार के आभूषणों से उन्हें सजाते हैं, नाना भोजन देकर उन्हें पुष्ट करते हैं परन्तु न उन बालकों की आत्मा से प्रेम है न उसके सद्गुणों से सजाते हैं और न ज्ञान का भोजन देकर उसे पुष्ट ही करना चाहते हैं। इसी प्रकार स्त्री के शरीर से हो प्रेम है अतः निरन्तर उसके शरीर को रक्षा के लिये प्रयत्न करते हैं। यदि स्त्री बीमार हो जावे तो वैद्य या डाक्टरों को सैकड़ों रुपये देकर उसे निरोग कराने की चेष्टा करते हैं परन्तु अज्ञान रंग से ग्रस्त उसकी आत्मा की चिकित्सा में कभी एक पैसा भी व्यय नही करना चाहते । सोचने की बात है कि जिस तरह शरीर पोषण के लिये हम अपने द्रव्यका व्यय करते है वैसा आत्म पोषण के लिये करें तो शारीरिक रोगों और आपत्तियों के बन्धन की बात तो दूर रही सांसारिक रोग और आपत्तियों के बन्धन सदा के लिये टूट जावें ।
वस्त्राभरण और खेल कूद के सामान की बात छोड़िये; एक
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org