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वे दिन नजदीक हैं जब स्वतन्त्र भारत के लाल किले पर विश्व विजयी प्यारा तिरंगा फहरा जायगा, अतीत के गौरव और यश के आलोक से लाल किला जगमगा उठेगा। जिनकी रक्षा के लिये ४० करोड़ मानवप्रयत्नहै, उन्हें कोई भी शक्ति फाँसी के तख्ते पर नहीं चढा सकती। विश्वास रखिये, मेरी अन्तरात्मा कहती है कि आजाद हिन्द सैनिकों का बाल भी बांका नहीं हो सकता।" ___ आखिर पवित्र हृदय वर्णी सन्त की भविष्य वाणी थी, आजाद हिन्द सेना के बन्दी वीर मुक्त हो गये, सचमुच अन्धेर नहीं केवल दो वर्ष की देर हुई, सन् १६४७ के १५ अगस्त को भारत स्वतन्त्र हो गया। वह लाल किला अतीत के गौरव और यश के आलोक से जगमगा उठा। लाल किले पर विश्व-विजयी प्यारा तिरंगा भी फहरा गया। - दिल्ली में जाकर देखो तो यही प्रतीत होगा जैसे लाल किले का तिरंगा देशद्रोही दुश्मनों को तर्जना दे रहा हो और यमुना का कल-कल निनाद हमारे नेताओं की विजय-प्रशस्ति गा रहा हो । समाज-सुधारक--
वर्णाजी की समाज-सुधार के लिये जो कुछ भी त्याग करना पड़ा, सदा तैयार रहे हैं । सामाजिक सुधार क्षेत्रों में अनेक बार असफल हुए, फिर भी अपने कर्तव्य पर सदा दृढ़ रहे हैं। यही कारण है कि वड़ेगाँव आदि के निरपराध बहिष्कृत जैन बन्धुत्रों का और द्रोणगिरि आदि के निरपराध बहिष्कृत ब्राह्मणों आदि अजैन बध्धुओं का उद्धार सफलता के साथ कर सके। वर्णीजी को जातीय पक्षपात तो छू भी नहीं सका है। यही कारण है कि जैन-अजैन पञ्चों के बीच उन्हें सम्मान मिला, पञ्चों की दुरंगी नीतियाँ, अनेक आक्षेप और समालोचनाएँ उनका कुछ भी न बिगाड़ सकीं । अनेक जगह की जन्मजात फूट और विद्वष को दूरकर बाल-विवाह, वृद्धविवाह और अनमेल विवाह एवं मरण-भोज जैसी दुष्प्रथाओं का बहिष्कार करने का श्रीगणेश करना वर्णीजी जैसों का ही काम है। कहना होगा कि
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