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( २३ ) ही बुन्देलखण्ड को भी उन पर गर्व है। बुन्देलखण्ड की उन्हें पुनः चिन्ता हुई, बुन्देलखण्ड को उनकी आवश्यकता हुई क्या कि वर्णी सूर्य के सिवा ऐसी
और कोई भी शक्ति नहीं थी जो अज्ञान तिमिराच्छन्न बुन्देलखण्ड को अपनी दिव्य ज्ञान ज्योति से चमत्कृत कर सकती। बुन्देलखण्ड की भूमि ने अपने लाड़ले लाल को पुकारा और वह चल पड़ा अपनी मातृभूमि की ओर अपने देश की ओर, अपने सर्वस्व बुन्देलखण्ड की ओर। बिहार प्रान्तीय उनके भक्त जनों को दुःख हुआ, वे नहीं चाहते थे वर्णीजी उन लोगों की
आँखों से ओझल हों, अतः अनेक प्रार्थनाएँ की, वहीं रुक रहने के लिये अनेक प्रयत्न किये परन्तु प्रान्त के प्रति सच्ची शुभ चिन्तकता और बुन्देलखण्ड का सौभाग्य वर्णाजी को सं० २००१ के वसन्त में सागर ले आया। अभूतपूर्व था वह दृश्य, जब वृद्ध सागर ने अपने डगमगाते हाथों ( चञ्चल तरंगों ) से अपने लाड़ ले लाल वणींजी का स्पर्श किया। मौन देशभक्त वर्णीजी-- ___ वर्णीजी जैसे धार्मिक हैं वैसे ही राष्ट्रीय भी हैं, इसलिये देश सेवा को यह एक मानव धर्म कहते हैं। स्वयं देश सेवा तन मन धन से करके ही यह लोगों को उस पथ पर चलने की प्रेरणा करते हैं यह इनकी एक बड़ी भारी विशेषता है।
सन् १९४५ ( सं० २००२ ) जव नेताजो के पथानुगामी आजाद हिन्द सेना के सेनानी, स्वतन्त्रता के पुजारी, देशभक्त सहगल, ढिल्लन, शाहनवाज अपने साथी आजाद हिन्द सेना के साथ दिल्ली के लाल किले में बन्द थे तब इन बन्दी वीरों की सहायतार्य जबलपुर की भरी आम सभा में भाषण देते हुए अपनी कुल सम्पत्ति मात्र अोढ़ने की दो चादरों में से एक चादर समर्पित की। देशभक्त वर्णीजी की चादर तीन मिनिट में ही तीन हजार रुपये में नीलाम हुई !
चादर समर्पित करते हुए वर्णाजी ने अपने प्रभाविक भाषण में आत्मविश्वास के साथ भविष्यवाणी की-“अन्धेर नहीं, केवल थोड़ी-सी देर है ।
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