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वर्णी-वाणी
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वह रूप देखने से हुई,या रूप विषयक देखने की इच्छा के जाने से हुई ? यदि रूप देखने से हुई तब हमको निरन्तर रूप ही देखते रहना चाहिये सो तो होता नहीं किन्तु हमारी जो रूप विषयक इच्छा थी वह चली गई अतः सुख व शान्ति का कारण इच्छा का अभाव है। इसका कारण न विषय है और न इच्छा ही है। इससे यह सिद्धान्त निकला कि रागादिक परिणाम ही दुःख के कारण हैं और इनका अभाव ही सुख का कारण है। इसलिये जहाँ पर सम्पूर्ण रागादिकों का अभाव हो जाता है वहीं अात्मा को पूर्ण शान्ति मिलती है और उसी अवस्था का नाम मोक्ष है। अतएव जिन्हें मुक्तावस्था की अभिलाषा है. उन्हें यही प्रयत्न करना चाहिये कि नवीन रागादि उत्पन्न न हों और जो प्राचीन हों वे रस देकर निर्जर जावें । केवल गल्पवाद से यह हल न होगा। अनादि काल से जो पर पदार्थों को अपनाने की प्रकृति पड़ गई है तथा प्रत्येक के साथ जो व्यवहार में अभिचि रखते हो, पञ्चेन्द्रियों के विषयों में अपनी शक्ति का अपव्यय कर रहे हो, निरन्तर किसी को अनुकूल तथा किसी को प्रतिकूल मानकर संसार के कार्य कर रहे हो, इनसे पीठ दो
और शुद्ध जीव द्रव्य का विचार करो अनायास अपने अस्तित्व क्रा परिचय हो जावेगा। जिससे उत्पन्न आनन्द का आप स्वयं अनुभव करोगे।
आज तक यही सोचते आयु बीत गई-"आत्मा क्या पदार्थ है ?" इसके लिये प्रथम तो विद्याभ्यास किया, अनन्तर विद्वानों के द्वारा अनेक ग्रन्थों का अध्ययन किया, विद्वानों के समागम में प्रत्येक अनुयोग के ग्रन्थों की मीमांसा की, अनेक धुरन्धर वक्ताओं के भाषण सुने, अनेक तीर्थ यात्राएँ की, बड़ेबड़े चमत्कार सुनकर मुग्ध हो गये, तथा अनेक प्रकार के तप
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