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वर्णी-वाणी
से उच्चगति में चले गये । महान् हिंसक से हिंसक शूकर, सिंह, नकुल, बानर भोगभूमि में चले गये । वहाँ सम्यग्दर्शन प्राप्त कर स्वर्ग गये। कई भव' में भगवान् आदिनाथ स्वामी के पुत्र हुए । तथा नरक गतिवाले जीव जिनके निरन्तर असाता का उदय व क्षेत्र जनित वेदना से निरन्तर संक्लेश परिणाम रहते हैं वे जीव भी किसी के उपदेश बिना ही स्वयमेव परिणामों की निर्मलता से सम्यग्दर्शन के पात्र होते हैं । परिणामों की निर्मलता से आसाता आदि प्रकृतियां कुछ भी विघात नहीं कर सकतीं ।
मोक्षके लिये जाति और कुल आवश्यक नहीं
नरकों में नाना प्रकार को तीव्र वेदना है परन्तु वहां भी जीव तीसरे नरक तक तीर्थकर प्रकृतिका बन्ध कर रहे हैं । इससे सिद्ध होता है कि नीच गोत्र में भी तीर्थङ्कर प्रकृति बँधती रहती है । परिणामों के साथ मोद मार्ग का सम्बन्ध है, वाह्य कारणों से उसका कुछ भो विघात नहीं होता अतः जो जाति अभिमान से परका तिरस्कार करते हैं वे धर्म का मार्मिक स्वरूप हीं नहीं समझते । श्री पूज्यपाद स्वामी ने कहा है- " जिनको जाति और कुलका अभिमान है वे मोक्षमार्ग से परे हैं ।" यथायेऽप्येवं वदन्ति यद्वर्णानां ब्राह्मणो गुरुरतः स एव परमपदयोग्यः तेsपिनमुक्ति योग्याः ।" यतश्च -
जातिर्देहाश्रिता दृष्टा देह एवात्मनो भवः ।
मुच्यन्ते भवात्तस्मात् ते ये जातिकृताग्रहाः ॥"
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अर्थात् "वर्णों में ब्राह्मण गुरु हैं, महान् है, पूज्य है इस लिये वही मुक्ति योग्य है" ऐसा जो कहते हैं वे भी मुक्ति के पात्र नहीं। क्योंकि ब्राह्मणत्व आदि जो जातियां है वे देह के आश्रय
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