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वर्णी-वाणी
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हो जावेगी, अनायास तज्जन्य दुःखों से छूट जावेगी। इसी का नाम मोक्ष है। __मोक्ष प्राप्ति में प्रबल साधक कारण १ सम्यग्दर्शन २ सम्यग्ज्ञान और ३ सम्यक् चारित्र हैं। इनके पहिले दर्शन ज्ञान और चारित्र की जो अवस्था होती है उसे १ मिथ्यादर्शन २ मिथ्या ज्ञान और ३ मिथ्याचारित्र कहते हैं । यही तीन कारण मोक्ष के सबसे सबल बाधक है। मिथ्यादर्शन____ मुक्ति का अर्थ है छटना, अर्थात् मिथ्यात्व के उदय में आत्मा पर पदार्थों में आत्मीयता की कल्पना करता है, उन्हें आत्मस्वरूप मानता है । यद्यपि वे आत्म स्वरूप नहीं होते परन्तु इसके तो यह प्रतीत होता है कि ये हम ही हैं जैसे जब अन्धकार में रस्सी में सर्प का ज्ञान होता है तब इसके ज्ञान में साक्षात्सप ही दीखता है। और इसके अन्तरङ्ग में भय प्रकृति की सता है अतः भयभीत होकर भागने की चेष्टा करता है । वास्तव में रस्सी सर्प नहीं हुई और न ज्ञान में सर्प है फिर भी जिस काल में यह ज्ञान हो रहा है उस काल में ज्ञान का परिणमन ज्ञानरूप होकर भी सर्प जैसा भान हो रहा है इसी से ये सभी उपद्रव हो रहे हैं। जब यह भेद विज्ञान हो जाय कि मुझे जो सर्प ज्ञान हो रहा है वह मिथ्या है तब उसका भय एकदम पलायमान हो जाता है । मिथ्या ज्ञानका अभाव ही भय के दूर होने का कारण है।
मिथ्याज्ञान
इस तरह जीवके दुःखका कारण मिथ्याज्ञान है। अर्थात्
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