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________________ वर्षा-वाणी २१६ ६८. विचार करना कठिन है परन्तु सद्विचार करना और भी परम दुर्लभ है । कार्तिक शु. ३वी. २४६५ ६६. जिन्होंने अन्तरङ्ग से पर वस्तु की अभिलाषा त्याग दी उनका संसार समुद्र पार होना अति सुगम है । अगहन कृ. १ वी. २४६५ ७०. संसार में विशुद्ध परिणाम हो सुख की सामग्री सम्पन्न कर सकते हैं । अगहन कृ. ८ वी. २४६५ ७१. जिसके जितनी उत्तम परिणामों की परम्परा होगी वह उतना ही अधिक सुखी होगा । अगहन शु. २ वी, २४६५ ७२. संसार में कोई किसी का शत्रु नहीं, हमारे परिणाम ही शत्रु हैं । जिस समय हमारे तीव्र कषाय रूप परिणाम होते हैं उस समय हम स्वयं दुःखी हो जाते हैं तथा पापोपार्जन कर दुगति के पात्र बन जाते हैं । अतः यदि सुख की अभिलाषा है तो सभी को अपना मित्र समझो, सभी से मैत्रीभाव रखो । अगहन शु. ३वी. २४६५ ७३. बिना स्वात्मकथा के आत्महित होना अति कठिन है । अगहन शु. १५ वी. २४६५ ७४. अभिलाषाएँ संसार में दुःखों का मूल हैं । पौष कृ. १२ वी. २४६५ ७५. वही मनुष्य योग्य और श्रेयोमार्ग का अनुगामी हो • सकता है जो अपनी शक्ति के अनुरूप कार्य करता है । पौष शु. ५ वी. २४६७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003997
Book TitleVarni Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1950
Total Pages380
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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