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सुधासीकर
प्रयत्न करो । अनेक वस्तुओं से प्रेम करना आत्मा के निजत्व का घातक है।
६१. इस संसार में जो जितनो अधिक बात और बाय बस्तु जाल से सम्बन्ध करेगा वह उतना ही अधिक व्यग्र और दुखी होगा।
अश्विन कृ. ३ वी. २४६४ ६२. पर को सुखी करके अपने को सुखी समझना परोपकारी का कार्य है।
६३. वे क्षुद्र जीव हैं जो पर विभव देखकर निरन्तर दुखी रहते हैं।
अश्विन शु. ९ वी. २४६४ ६४. विजया दशमी मनाने की सार्थकता तभी है जब कि पञ्चन्द्रियों की विषय सेना के स्वामी रावण राक्षस रूप मन का निपात किया जाय।
अश्विन शु. १० वी. २४६४ ६५. मौन का फल निरोहवृत्ति है अन्यथा मौन से कोई लाभ नहीं।
अश्विन शु. १३ वी. २४६४ ६६. संसार में सब वस्तुएँ सुलभ हैं परन्तु आत्म विवेक होना अति दुलभ है।
कार्तिक कृ. १ वी. २४६४ ६७. जब कभी भी चित्तवृत्ति उद्विग्न हो तब स्त्रात्म वृत्ति क्या है इस पर विचार करो, चित्त स्थिर हो जायगा।
कातिक शु. २ वी. २४६५
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