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अर्णी-वाणी
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५१. अज्ञानता पाप की जड़ है।
वैशाख शु. ९ वी. २४६४ ५२. जो मनुष्य अपने मन पर विजयी नहीं संसार में उस की आधोगति निश्चित है।
वैशाख सुदी १३ वी. २४६४ ५३. प्रवृत्ति वही सुख कर होती है जो निवृत्ति परक हो।
ज्येष्ठ कृ. ३ वी. २४६४ ५४. जिसने आत्म गौरव त्यागा वह मनुष्य मनुष्य नहीं ।
जेष्ठ कृ. ५ वी. २४६४ ५५. जिन महापुरुषों ने अपने को जाना वही परमात्मा पद के अधिकारी हुए।
५६. महापुरुष होने का उपाय केवल अपने आत्म गौरव की रक्षा करना है । परन्तु आत्मगौरव का अथ मान करना और अपनी तुच्छता दिखाना नहीं है। क्योंकि आत्मा न उच्च है, न नीच है, अतः ऊँच नीच की कल्पना का त्याग ही आत्मगौरव है और वही आत्म पद में स्थिरता का प्रधान कारण है। ५७. संसार से याचना करना महती लघुता का पोषक है।
श्रावण क. ५ वी. २४६४ ५८. विचारधारा पवित्र बनाने के लिये उत्तम संस्कार बनाने की बड़ी आवश्यकता है ।
५६. केवल शास्त्र जानने से ही मोक्ष मार्ग की सिद्धि नहीं होती, सिद्धि का कारण अन्तरङ्ग त्याग है। ... ६०. यदि मोक्ष की अभिलाषा है तो एकाकी बनने का
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