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सुधासीकर
४३. पुण्यबन्ध का कारण मन्द कषाय है । जहाँ मानादि के वशीभूत होकर केवल द्रव्य लेने और प्रशंसा कराने का अभिप्राय रहता ई वहां पुण्यवन्ध होना अनिश्चित है ।
फाल्गुन कृ. १२.वी. २४६४ ४४. आत्मा जिस कार्य से सहमत न हो उस कार्य के करने में शीघ्रता न करो ।
फाल्गुन शु. ३. वी. २४६४
४५. किसी के प्रभाव में आकर सन्मार्ग से वञ्चित मत हो जाओ । यह जगत् पुण्य पाप का फल है अतः जब इसके उत्पादक ही है हैं तब यह स्वयमेव हेय हुआ ।
४६. किसी भी कार्य के करने की प्रतिज्ञा न करो । कार्य करने से होता है प्रतिज्ञा करने से नहीं ।
चैत्र कृष्ण ३ वी. २४६४
४७. अज्ञानता के सद्भाव में परम तत्व की आलोचना नहीं बनती । परम तत्त्व कोई विशेष वस्तु नहीं, केवल आत्मा की शुद्धावस्था है, जो अज्ञानी जीव को नहीं दिखती।
चैत्र कृ. ११ वी. २४६४
४८. साधनहीन जीवों पर दया करना उत्तम है परन्तु उन्हें सुमार्ग पर लाना और भी उत्तम है
।
४९.
२४६४
चैत्र शु. २ वी. जब तक पूर्व का अवधार न हो जाय आगे न चलो । वैशाख ८ वी २४६४
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पर के छिद्र देखना ही स्वकीय अज्ञानता की परम
५०.
अवधि है ।
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वैशाख
कृ. ३० वी. २४६४
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