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सुधासीकर १३. अपना स्वभाव अभिमान आदि अवगुणों से रहित, भोजन विशेष चटपटी चीजों से रहित और वस्त्र चाक्यचिक्य से रहित स्वदेशी शुद्ध खादी के रखो, देशभक्त बन जाओगे।
माघ कृ १० वी. २४६३ १४. दोनों पक्षों का हाल जाने बिना न्याय न करो। न्याय करते समय पक्ष-विपक्ष का पूर्ण परामर्श कर जिस पक्ष के साधक प्रमाण प्रबल हों उसी का समर्थन करो।
माघ शु.१ वी. २४६३ १५. मार्ग में सुख है अतः कुमार्ग पर मत जाओ। जिन गुणों से पतित आत्मा का उद्धार होता है वह गुण प्राणी मात्र में हैं।
माघ शु. १२ वी. २४१३ १६. "कहने से करने में महान् अन्तर है" जिन्होंने इस तत्व को नहीं जाना वे मनुष्य नहीं पामर हैं।
माघ शु. १३ वी. २४६६ १७. किसी को धोखा मत दो। धोखेबाजो महान् पाप है।
माघ शु. १४ वी. २४६३ १८. बिना परिग्रह की कृशता के व्रत का धारण करना अनर्थ परम्परा का हेतु है। जो निरुद्यमी होकर त्याग करते हैं वे अनर्थ पोषक हैं।
___ फाल्गुन कृ. १ वी. २४६३ १९. शिक्षाप्रद बात बच्चे की भी मानो। अपनी प्रकृति को सुधारने की चेष्टा करो, तभी आपका उपदेश दूसरों पर असर कर सकता है।
फाल्गुन कृ. ५ वी. २४५६
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