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वर्णी-वाणी
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६. यदि आत्म-कल्याण की इच्छा है तब मन, वचन काय के व्यापार को कषाय मिश्रित मत करो।
पौष शु. ४ वी. २४६३ ७. पर को दिखाने के लिए कोई काम न करो। जिन प्राणियों के सम्बन्ध से सुख का अभाव हो उन्हें छोड़ना ही अच्छा है।
पौष शु. ५ वी २४६३ ८. पर का उत्कर्ष देख ईर्षा और अपना उत्कर्ष देख गर्व मत करो।
पौष शु. ६ वी. २४६३ ____६. अधिक सम्पर्क मत रखो, यह एक रोग है जो बढ़ते बढ़ते असह्य दुःख का कारण हो जाता है।
पौष शु. १३ वी. २४६३ १०. अच्छे कार्य करते समय प्रसन्न रहो, यदि पाप का कार्य बन जावे तब उत्तर काल में आत्मनिन्दा करते हुए भविष्य में वह कार्य न हो ऐसा प्रयत्न करो, यही प्रायश्चित्त है।
माघ कृष्णा ७ वी २४६३ । ११. सच और झूठ छिपाये नहीं छिपता, अतः इस बात को भूल जाओ कि हम जो कुछ भी अकार्य करते हैं उसे कोई देखनेवाला नहीं।
माघ कृ. ८ वी. २४६३ १२. विपत्ति से रक्षा के लिए धन सञ्चय की आवश्यकता नहीं, आवश्यकता संयम भाव द्वारा आत्मरक्षा की है। .
माघ कृ. ९ वी. २४६३
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