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दैनन्दिनी के पृष्ठ १. दैनन्दिनी (डायरी) का यही उपयोग है कि अपनी अतोत जीवन यात्रा का आद्योपान्त सिंहावलोकन कर दोषों को दूर किया जाय, गुणों का सञ्चय किया जाय और उज्वल भविष्य निर्माण के लिए स्वपर हित में प्रवृत्त होकर आदर्श बना जाय । २. आज की बात को कल पर मत छोड़ो।
पौष कृष्णा १२ वी. २४६३ ३. आकुलता का मूल कारण इच्छा है, इच्छा का मूल कारण वासना है, वासना का मूल कारण विपरीत आशय है और विपरीत आशय का मूल कारण परपदार्थ में स्वाम. बुद्धि है।
पौष कृष्णा १३ बीराब्द २४६३ ४. व्रत में सावधानी रखो, केवल भूखे रहना कार्य कर नहीं।
पौष कृ. १४ वी. २४६३ ___५. धर्म वह वस्तु है जहाँ कषाय पूर्वक मन, वचन, काय के व्यापार रुक जावें । वही धर्म मोक्षमार्ग है।
पौष शुक्ला ३ वी. २४६३
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