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________________ सुधासीकर ४. कहने की अपेक्षा मार्ग में लग जाना अच्छा है । अति कल्पना किसी भी प्रयोजन को सिद्ध नहीं कर ५. सकती । २०५ ६. सच्चा हितैषी वही है जो अपने आत्मीय जनों को हित की ओर ले जावे । ७. जिस देश में जाति को रक्षा के अर्थ मनुष्यों की चेष्टा न हो वहाँ रहना उचित नहीं । हम तो जाति के हीन बालकों के सामने धन को बड़ा नहीं समझते । हमारा तो यह विश्वास है कि धार्मिक बालकों की रक्षा से उत्कृष्ट धर्म इस काल में अन्य नहीं । इनकी रक्षा के आधीन ही धार्मिक स्थानों की रक्षा है । ८. ऊपरी लिवास से अन्तरङ्ग में चमक नहीं आती । ६. " वचन की सुन्दरता से अन्तरङ्ग को वृत्ति भी सुन्दर हो यह नियम नहीं | १०. अपनी भूलों से शिक्षा न लेनेवाला मनुष्य मूर्ख है । मूर्ख ही नहीं मनुष्य व्यवहार के योग्य नहीं । प्रत्येक मनुष्य से भूल होती है, फिर से उस भूल को न करना ही विज्ञानी बनने का पाठ है । ११. वह मनुष्य महा मूर्ख है जो बहुत बकवाद करता है । १२. जो आदमी लक्ष्यभ्रष्ट हैं वे ही सबसे बड़े मूर्ख हैं । उनका समागम छोड़ना ही हितकारी है । १३. जो गुड़ देने से मरे उसे विष कभी मत दो | इसका तात्पर्य यह कि जो मधुर वाणी से अपना दुर्व्यवहार छोड़ दे उसके प्रति कटु वचनों का प्रयोग मत करो । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003997
Book TitleVarni Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1950
Total Pages380
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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