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वर्ण-वाणी
___७३. संसार को प्रायः सभी दुखात्मक कहते हैं, यदि संसार दुःख रूप है तब यह जो हमको शुभ कार्यों के करने का उपदेश दिया जाता है वह क्यों ? क्यों कि शुभ कर्म भी तो बाधक हैं। वास्तव में संसार में दुःख दिखा कर लोगों को उत्साह से वञ्चित कर दिया जाता है । असल में संसार किसी स्थान का नाम नहीं, रागादि रूप जो आत्मा की परणति है उसी का नाम संसार है । और जहां रागादि परिणामों का अभाव हुआ वहां
आत्मा को मोक्ष है। ___ ७४. अभिलाषा अनात्मीय वस्तु है । इसका त्यागी ही आत्मस्वरूप का शोधक है।
७५. सब आत्माएँ समान हैं केवल पर्याय दृष्टि से हो भेद है। ___५६. जो मनोनिग्रह करने में समर्थ है उसे मोक्ष महल समीप है अन्य कार्यों को निष्पत्ति तो कोई वस्तु नहीं । लौकिक खण्ड
१. जब जैसा जिसके द्वारा होना होता है होकर ही रहता है।
२. जिसको बहुत दिन से सोचते हैं वह कार्य होता नहीं, जिसका कभी स्वप्न में भी विचार नहीं करते वह अकस्मात् सामने आ पड़ता है। राजतिलक को तयारी करते समय किसने सोचा था कि श्रीराम को वनवास होगा ? विधि का विलास विचित्र और होनी दुर्निवार है !
३. मार्गदर्शक वही हो सकता है जो सरल और निस्पृह हो।
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