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सुधासीकर
३३. आत्मज्ञान शून्य सभी प्रकार के व्यापार उसी तरह निष्फल हैं जिस प्रकार नेत्रविहीन सुन्दर मुख निष्फल है ।
३४. यदि अहं बुद्धि हट जावे तब ममत्व बुद्धि हटने में कोई विलम्ब नहीं।
३५. यदि विकलता का सद्भाव है तब सम्यग्ज्ञानी और अनात्मज्ञानी में कोई अन्तर नहीं । जिस समय आत्मा से कर्म कलङ्क दूर हो जाता है उस समय आत्मा में शान्ति का उदय होता है। अतः कल्याण आत्मा से भिन्न वस्तु नहीं अपि तु आत्मा की ही स्वभावज परिणति है।
३६. अनुराग पूर्वक परमात्मा का स्मरण भी बन्ध का कारण है अतः हेय है। मूल तत्त्व तो आत्म ही हैं। जबतक अनात्मीय भाव औदयिकादि का आदर करेगा संसार ही का पात्र होगा।
३७. व्याधि का सम्बन्ध शरीर से है। जो शरीर को अपना मानते हैं उन्हें ही व्याधि है, भेदज्ञानी को व्याधि नहीं ।
३८. जिन जीवों ने अपराध किया है उन जीवों को तत्काल अथवा कभी भी दण्डित करने या मारने का अभिप्राय न होना इसो का नान प्रशम है। यह गुण मानव मात्र के लिए आवश्यक है।
३६. अनात्मोय भाव का पोषण करना विषधर से भी भयानक है।
४०. जो गुण अन्यत्र खोजते हो वे तुम्हारे नहीं, आत्मा का उनसे कोई उपकार नहीं, उपकार तो निज शक्ति से होगा, उसी का विकाश करना श्रेयस्कर है ।
४१. सब से उत्कृष्ट दान ज्ञान दान है।
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