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वर्णी-वाणी
कर्मोदय सूर्योदय में उल्लू की तरह अन्धा हो जाता है, आत्मा पर बार करने की उसमें कोई शक्ति नहीं रहती ।
२३. जिस आचरण से आत्मा में निर्मलता का उदय नहीं हुआ वह आचरण दम्भ है ।
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२४. स्वाध्याय का फल भेदज्ञान और व्रतादि क्रिया का फल निवृत्ति है ।
२५. पर की रक्षा करने से दया नहीं होती किन्तु तंत्र कषाय को शमन कर अपने आत्मीय गुण की रक्षा करना दया है।
२६. बाह्य क्रिया से अन्तरङ्ग की वासना का यथार्थ ज्ञान होना सर्वथा असम्भव है ।
२७. वही जीव महा पुण्यशाली है जिसने अनेक प्रकार के विरुद्ध कारणों के समागम होने पर भी अपने चित्रप को शुचिता से रक्षित रखा है ।
२८. इधर उधर मत भटको, आपका आत्मा ही आपका सुधार करनेवाला है ।
२६. जिस ज्ञानार्जन से मोह का उपशम नहीं हुआ उस ज्ञान से कोई लाभ नहीं ।
३०. स्नेह संसार का कारण है परन्तु धार्मिक पुरुषों का स्नेह मोक्ष का कारण है ।
३१. यदि राग बुरा है तो राग में राग करना और बुरा है । ३२. जिसने मानवीय पर्याय में रागादि शत्रु सेना का संहार कर दिया वही शूर है ।
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