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प्रमाद १. आत्मा का भोजन ज्ञान दर्शन है, जो उसके ही पास है, किसी से याचना करने की आवश्यकता नहीं। चरणानुयोग का कोई नियम भी लागू नहीं कि स्नान करके ही खाओ या दिन में हो खाओ फिर भी प्रमाद इतना बाधक है जिससे उस भोजन के करने में हम आलस कर देते हैं। अथवा कषाय रूपी विष मिला कर उसे ऐसा दूषित कर देते हैं जिससे
आत्मा मूर्छित हो कर चतुर्गति का पात्र बनता है अतः प्रमाद का परिहार कर अपनी सावधानो में कषाय विष मिलने का अवसर मत दो।
२. जो इस प्रमाद के वशीभूत होकर आत्मस्वरूप को भूलता है वही भौतिक पदार्थों के व्यामोह में फँसता है।
३. आज तक हम और आप जो इस संसार में भ्रमण कर रहे हैं उसका कारण प्रमाद हो है।
४. हिंसादि पाँच पापों का मूल कारण प्रमाद है।
५. पाच इन्द्रियों के विषय में रत होना प्रमाद है अतः इनका त्याग करो।
६. कषायों के बशीभूत होना भी प्रमाद है। कषायवान् आत्मा का आत्मकल्याण होना दुर्लभ है।
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