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वर्णा-वाणी
३. अन्तस्थ शत्रु का बल तभी तक है जब तक हम पराधीन हैं।
४. पराधीनता ही हमें संसार में बनाए है तथा वही निज स्वरूप से दूर किये है।
५. जहाँ पराधीनता है वहां सुख की मात्रा होना कठिन है।
६. पराधीनता में मोह की परणति रहती है जो आत्मा के गुणों की बाधक है।
७. हम लोग अति कायर हैं जो अपने को पराधीनता के जाल में अर्पित कर चुके हैं। इसी से संसारयातनाओं के पात्र हो रहे हैं।
८. जो मनुष्य पराधीन होते हैं वे निरन्तर कायर और भयातुर रहते हैं।
६. जो आत्मा पराधीन होकर कल्याण चाहेगा वह कल्याण से वञ्चित रहेगा। अपने स्वरूप को देखो, ज्ञाता दृष्टा होकर प्रवृत्ति करो। चाहे भगवत् पूजा करो, चाहे विषयोपभोग में उपयुक्त होओ, उभयत्र अनात्मधर्म जान रत और अरत न होओ।
१०. पराधीनता को त्याग कर अरहन्त परमात्मा ज्ञायक स्वरूप आत्मा ही पर लक्ष्य रखो। पास होते हुए भी कस्तूरी के अर्थ कस्तूरी मृग की तरह स्थानान्तर में भ्रमण कर आत्मशुद्धि की चेष्टा न करो।
११. पर की सहायता परमात्म पद की बाधक है। १२. पराधीनता से बढ़कर कोई पाप नहीं।
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