________________
-वर्णी वाणी
१९४
७. अप्रमत्त बनने के लिये विकथाओं का त्याग करना भी आवश्यक है।
८. जो निद्रालु और प्रणयवान हैं वे भला अप्रमादी कैसे हो सकते हैं। ___६. प्रमाद संसार की वेल है इसका त्याग करो ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org