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कायरता
१. त्याग धर्म में कायरता को स्थान नहीं । २. कर्म शत्रुओं की विजय शूरों से होती है, कायरों
से नहीं।
३. कायरता से शत्रु के बल की वृद्धि होती है और अपनी शक्ति का ह्रास होता है, अतः जहाँ तक बने कायरता को अपने पास न फटकने दो।
४. दुःखमय संसार उसी के है जो अपनी आत्मा को हीन और कायर समझता है। जो शूर है उसे कुछ दुःख नहीं ।
५. कायरता संसार की जननी है।
६. पर से न कुछ होता है न जाता है। आप ही से मोक्ष और आप हो से संसार दोनों पर्यायों का उदय होता है। आवश्यकता इस बात की है कि हम संसार में भ्रमण करानेवाली कायरता को दूर करें।
७. “संसार असार है" इस वाक्य के वास्तविक अर्थ को न समझ कर लोग अर्थ का अनर्थ करते हैं। परिणाम यह होता है कि भोला मानव समाज कायर और कर्तव्य पथ से च्युत होकर त्यागी, साधु, उदासीन आदि अनेक भेषों को धारण कर भूतल का भारभूत हो जाता है। आज भारतवर्ष में हिन्दू
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