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पर संसर्ग १. पर संसर्ग पाप की जड़ है। जिसने इसे त्यागा वही सच्चारित्र का पात्र है।
२. पर संसर्ग छोड़ना निवृत्ति का कारण है।
२. पर पदार्थ के आश्रय से सुख का भोक्ता बनने की चेष्टा करना आकाश से पुष्प चयन के सदृश है।
४. जब तक पर पदार्थ से सम्बन्ध है तभी तक यह जीव परम दुःख का अास्पद है।
५. अन्य पदार्थों के संसर्ग से ही बन्ध होता है।
६. पर संसर्ग का विकल्प ही संसार है और उसका छूट जाना ही मोक्ष है।
७. पर संसर्ग से आकुलता होती है। आकुलता से स्नेह का अभाव, स्नेह के अभाव से वात्सल्य का अभाव, वात्सल्य के अभाव से सहृदयता का अभाव और सहृदयता के अभाव से पारस्परिक सद् व्यवहार का भी अभाव हो जाता है ?
८. पर संसर्ग अनर्थों का बीज, आपत्तियों की जड़, विपत्तियों की लता और मोह का फल है। ____६. पर संसर्ग वह संक्रामक रोग है जिसकी ज्यों-ज्यों दवा करो त्यों-त्यों बढ़ता है।
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