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वर्णी-वणी
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६. चिन्ता से आत्म परणति कलुषित और व्यग्र रहती है।
१०. जिनका मन चिन्ता से मलिन है उनके विशुद्धता का अंश कहाँ से उदय होगा ?
११. जिससे उत्तरोत्तर शरीर क्षीण औव मन चञ्चल होता जाता है वह चिन्ता ही तो है। इसका त्याग करो और आत्महित में लगो।
१२. चिन्ता किसकी करते हो जब पर वस्तु अपनी नहीं तब उसकी चिन्ता से क्या लाभ ?
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