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वर्णी-वाणी
१८४ नक रोग है इसी के वशीभूत होकर अनेक अनर्थों का उदय होता है, उन अनर्थों से वृत्ति हेयोपादेय शून्य हो जाती है और उसका फल क्या है ? सो सभी संसारी जीवों के सामने है ।
३१. परिग्रह पर वही व्यक्ति विजय पा सकता है जो अपने को, अपने में, अपने से, अपने लिये, अपने द्वारा आप ही प्रात करने की चेष्टा करता है । चेष्टा और कुछ नहीं, केवल अन्तरङ्ग में पर पदार्थ में न तो राग करता हैं और न द्वेष करता है।
३२. परिग्रह से मनुष्य का विवेक चला जाता है। और यह म्पष्ट ही है कि विवेक हीनता में जो भी असत्कार्य हो जाय वह थोड़ा है।
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