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परिग्रह
भी मिल जावें तो भी उनकी पूर्ति नहीं हो सकती। अतः किसी की आवश्यकता न हो यही आवश्यकता है। ____७. संसार का प्रत्येक प्राणी परिग्रह के पजे में है। केवल संतोष कर लेने से कुछ हाथ नहीं आता। पानी विलोड़ने से घी की आशा तो असम्भव ही है छाँछ भी नहीं मिल सकता। जल व्यर्थ जाता है और पीने के योग्य भी नहीं रह जाता।
८. परिग्रह की लिप्सा में आज संसार की जो दशा हो रही है वह किसी से अज्ञात नहीं। बड़े-बड़े प्रभावशाली तो उसके चक्कर में ऐसे फँसे कि गरीब दीन हीन प्रजा का नाश कराकर भी अपनी टेक रखना चाहते हैं। ___. वर्तमान में लोग आडम्बरप्रिय हैं इसी से वस्तुतत्त्व से कोसों दूर हैं।
१०. व्यापार करने से आत्मा पतित नहीं होता, पतित होने का कारण परिग्रह में अति ममता ही है।
११. षट् खण्ड पृथ्वी का स्वामित्व भी ममता की कृशता में दुःखद नहीं ।
१२. ममता की प्रबलता में मनुष्य अपरिग्रही होकर भी जन्म-जन्मान्तर में दुःख के पात्र होते हैं ।
१३. जो कहता है "हमने परिग्रह छोड़ा” वह अभी सुमार्ग पर नहीं आया। रागभाव छोड़ने से पर पदार्थ स्वयमेव छूट जाते हैं। अर्थात् लोभकषाय के छूटते ही धनादिक स्वयमेव छूट जाते हैं।
१४. बाह्य पदार्थ मूर्छा में निमित्त होते हैं । वह मूर्छा दो प्रकार की है-शुभोपयोगिनी और अशुभोपयोगिनी। इनके
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