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परिग्रह
१. संसार में परिग्रह ही पाँच पापों के उत्पन्न होने में निमित्त होता है। जहाँ परिग्रह है वहाँ राग है, जहां राग है वहीं आत्मा के आकुलता रूप दुःख है वहीं सुख गुण का घात है, और सुखगुण के घात का नाम ही हिंसा है।
२. संसार में जितने पाप हैं उनकी जड़ परिग्रह है । आज जो भारत में बहुसंख्यक मनुष्यों का घात हो गया है तथा हो रहा है उसका मूल कारण परिग्रह ही है। यदि हम इससे ममत्व घटा देवें तो अगणित जीवों का घान स्वयमेव न होगा। इस अपरिग्रह के पालने से हम हिंसा पाप से मुक्त हो सकते हैं, और अहिंसक बन सकते हैं ।
३. परिग्रह के त्यागे बिना अहिंसा-तत्त्व का पालन करना असम्भव है। भारतवर्ष में जो यागादिक से हिंसा का प्रचार हो गया था, उसका कारण यही प्रलोभन तो है कि इस याग से हमको स्वर्ग मिल जावेगा, पानी बरस जावेगा, अन्नादिक उत्पन्न होंगे, देवता प्रसन्न होंगे। यह सर्व क्या था ? परिग्रह ही तो था । यदि परिग्रह की चाह न होती तो निरपराध जन्तुओं को कौन मारता ?
४. आज यदि इस परिग्रह में मनुष्य आसक्त न होते तब
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