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रागद्वेष २. चित्त से विषयों की विकल्प सन्तति को दूर करो। ____३. सब जीवों से अन्तरंग से मैत्रीभाव करो।
४. प्रत्येक प्राणी के साथ आत्मीयता को छोड़ो परन्तु आत्मसदृश लोकप्रिय व्यवहार करो। ___५. केवल बचनों के आय-व्यय से तुष्ट और रुष्ट न होना अपि तु अपनों शुद्धात्मपरिणति को गति को सम्यक् जानकर ही व्यवहार करो।
६. "व्यर्थ पर्याय चली गई, क्या करें, कहाँ जावें" इस आर्तध्यान को छोड़ो। ___ ७. “हम आत्मा हैं, हम में जो दोष आ गये हैं वे हमारी भूल से आ गये हैं, अतः हम ही उनको दूर करने में समर्थ हैं" ऐसा विचार रखो और उस विचार को क्रमशः यथाशक्ति सक्रिय रूप दो, एक दिन आत्मा से परमात्मा बन जाओगे, नर से नारायण हो जाओगे।
८. जिन कारणों को पाकर रागद्वेष उत्पन्न होता है उन्हें पृथक् करो।
६. उन महापुरुषों का समागम करो जिनका रागद्वेष कम हो गया है।
१०. उन महापुरुषों का जीवन चरित्र पढ़ो जिन्होंने इसका नाश कर आत्मा की निर्वाण अवस्था प्रात कर ली है।
११. निरन्तर रागद्वेष की परणति दूर करने में प्रयत्नशोल रहो।
१२. रागद्वेष पोपक जो आगम है उसे अनात्मीय जान उसका अध्ययन करने की इच्छा छोड़ो।
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