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वर्णी-वाणी
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१५. संसारजाल में फंसानेवाला कौन है ? जरा अन्तर्दृष्टि से परामर्श करो। जाल हो चिड़या को फँसाता है ऐसी भ्रान्ति छोड़ो, बहेलिया फँसाता है यह भ्रम भी त्यागो, जिवेन्द्रिय फँसाती है यह अज्ञानता भी त्यागो, केवल चुंगने की अभिलाषा हो फँसाने में बीजभूत है । इसके न होने पर वे सब व्यर्थ हैं। इसी तरह इस दुःखमय संसार के जाल में फँसाने का कारण न तो यह वाह्य सामग्री है, न मन वचन और काय का व्यापार ही है, न द्रव्यकर्मसमूह है, केवल स्वकीय आत्मा से उत्पन्न रागादिपरिणति ही सेनापति का कार्य कर रही है। अतः इसी का निपात करो। अनायास ही इस संसारजाल के बन्धन से मुक्त होने का उपाय पा जाओगे। : १६. आज कल लोगों ने धर्मात्मा बनने के बहुत सीधे और सरल उपाय निकाल लिये हैं। थोड़ा स्वाध्याय कर लिया, आसन जमाकर आँख मींचकर एक घण्टा माला फेरने की प्रथा निभा दो, दस व्यक्तियों के समुदाय में-"संसार असार है" कथा कह डाली, न्याय मार्ग की शब्दों से पुष्टि कर दी, बहुत हुआ तो पर्व के दिन व्रत उपवास कर लिया, और आगे बढ़े तो किसी संस्था को कुछ दान दे दिया, और भी विशेष काम किया तो किसी त्यागी महात्मा को भोजन करा दिया, बस धर्मात्मा बन गये ! परन्तु यह सब ऊपरी बातें हैं। आत्मा के प्रदेशों में तादात्म्य से बैठा हुआ रागादि भाव जब तक नहीं गया तब तक यह आचरण दम्भ है ।
. १७. "रागादि भावों का अभाव कैसे हो" यह एक समस्या है । उसके सुलझाने के मुख्य उपाय ये हैं. १. शान्ति बाधक विषयों का परित्याग करो।
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