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रागद्वेष १. तिला (तिल्ली) में जबतक स्नेह (तैल) रहता है तब तक वह बार बार यन्त्र ( कोल्लू) में पेले जाते हैं परन्तु स्नेह शून्य खल (खली) को यन्त्र की यन्त्रणा नहीं सहनी पड़ती। उसी तरह जब तक आत्मा में स्नेह (राग) रहता है तबतक संसार यन्त्र की यातनाओं को सहना पड़ता है परन्तु जब यह आत्मा स्नेह शून्य (राग रहित) हो जाता है, तब वह संसार यातनाओं से मुक्त हो जाता है। ___२. रागादिकों के होने पर जो आकुलित हो जाता है और उनके उपशम के लिये कभी स्तोत्र पाठ, कभी चरणानुयोग द्वारा प्रतिपाद्य उपवास व्रत, कभी अध्यात्मशास्त्रप्रतिपाद्य वस्तु का परिचय, कभी साधुसमागम, कभी तीर्थयात्रा आदि सहस्रों उपाय कर उन्हें शान्त करने की चेष्टा करता है वह कभी भी आकुलता के घेरे से बाहर नहीं होने पाता।
३. वही जीव रागादिकों के रण में विजय पा सकेगा जो इनके होने पर साम्यभाव का अवलम्बन करेगा।
४. संसार का मूल कारण रागद्वेष है । इस पर जिसने विजय प्राप्त कर ली उसके लिये शेष क्या रह गया ?
५. योगशक्ति उतनी घातक नहीं, वह केवल परिस्पन्द करती है । यदि रागादि कलुषता चली जाय तब वह उपद्रव नहीं
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