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मोह है अमुक अनुपयोगी है, कुटुम्ब बाधक है साधुवर्ग साधक है यह सब मोहोदय की कल्लोलमाला है।
२४. मोह का प्रकोप है जो विश्व अशान्तिमय हो रहा है। जो व्यक्ति अपने स्वरूप की ओर लक्ष्य रखते हैं और अपने उपयोग को रागद्वेष की कलुषता से रक्षित रखते हैं वे इस अशान्ति से ग्रसित नहीं होते।
२५. मोह के सद्भाव में निग्रन्थों को भी आकुलता होती है देशव्रती और अबती की तो कथा ही क्या है।
२६. मोहकर्म का निःशेष अभाव हुए बिना विकल्पों को निवृत्ति नहीं होती, अतः विकल्पों के होने का खेद मत करो।
२७. परिग्रह से आत्माका कोई सम्बन्ध नहीं, फिर भी मोह नाना कल्पना कर किसी न किसी को अपना मान लेता है। हमने ऐसी प्रकृति अनादि से बना रक्खी है कि विना दूसरों के रहने में कष्ट होता है। कहने को तो सभी कहते हैं "हम न किसो के न कोई हमारा” परन्तु कर्तव्य में एकांश भी नहीं । यही अविवेक संसारका ब्रह्मा है और कोई व्यक्ति ब्रह्मा नहीं । . २८. हायरे मोह ! तेरे सद्भाव में ही तो यह उपासना है"दासऽई" और तेरे ही असद्भाव में "सोऽहं" कितना अन्तर है ! जिसमें ऐसी ऐसी विरोधी भावनाएं हों वह वस्तु कदापि ग्राह्य नहीं अतः अब इसके जाल से बचो। उपाय यह है कि जो अधीरता इसके उदय में होती है पहिले उसे श्रद्धा के बल से हटाओ और निरन्तर अपनी शक्ति की भावना लाओ। एक दिन वह आयगा जब "दासोऽहं" और "सोऽहं" सभी विकल्प मिट जावेंगे। यहाँ तक कि "मैं ज्ञाता दृष्टा हूँ, अरहन्त सिद्ध परमात्मा हूँ, ज्ञायक स्वरूप आत्मा हूँ” आदि विकल्पों को भी अवकाश न मिलेगा। _ २६, संसार में सबसे बड़ा बन्धन मोह है।
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