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मोह १. संसार के मूल हेतु हम स्वयं है। इसी प्रकार मोक्ष के भी कारण हम ही हैं । इसके अतिरिक्त कल्पना मोहज भावों की महिमा है । मोह को नष्ट करना संसार के बन्धन से मुक्त होना है।
२. जब तक मोह का उदय रहेगा मुक्ति लक्ष्मी का साम्राज्य मिलना असम्भव है।
३. मोह की कथा अवाच्य और शक्ति अजेय है।
४. मोह को जीतना चाहो तो परपदार्थ के समागम से वहिमुख रहो।
५. हम चाहते हैं कि आत्मा संकटों से बचे परन्तु संकटों से बचने का जो अभ्रान्त मार्ग है उससे हम दूर भागते है। कोई मनुष्य पूर्व के तीर्थ दर्शन को अभिलाषा करे ओर मार्ग पकड़े पश्चिम का तब क्या वह इच्छित स्थान पर पहुँच सकता है ? कदापि नहीं। यही दशा हमारी है। केवल संतोष कर लेना मिथ्यामार्ग है।
६. जिस महानुभाव ने रागादिकों को जीत लिया वही मनुष्य है। यों तो अनेक जन्मते और मरते हैं उनकी गणना मनुष्यों में करना व्यर्थ हैं।
७. आत्मा चिदानन्द है उसके शत्रु मोहादि भाव हैं।
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