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सहायक होगे । आप अपने मार्ग को आदर्श रखकर उसमें भी उनको आदर्श बना सकेंगे ऐसी हमें आशा है ।
इससे अब जो भी लेख भेजें अपना दृष्टिकोण उसमें बिलकुल न बदलें, . पर गम्भीरता से सोचकर विषय को इस प्रकार रखें कि आपकी नीव मजबूत हो जाय । आप सच समझें आपको उस जलते हुए तवे को शान्त करना है जिस पर पानी के कुछ बूँद तो वैसे ही उछल जल जाते हैं। इससे कार्य बड़ी गम्भीरता से करिये कारण इस में बड़े-बड़े रंड़े आएँगे जिसका मुख्य कारण यही है कि अज्ञान पर पैसेवाला समाज पंडितों की प्रसंशा में इतना लट्टू है कि न समाज सुधरी न पंडित ; जो कि उस पर निर्भर हैं उसे सुधार सके । इससे प्रयोग बड़े ज्ञान व गम्भीरता का होगा व आप इसको लक्ष्य में रखें । "
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आपका
बालचन्द्र मलैया मलैयाजी के इस पत्र से मुझे एक नई दिशा, नई जीवन जागृति एवं नई गतिविधि का मन्त्र मिला । " वर्णवाणी" का सम्पादन जो स्थगित कर चुका था, पुनः प्रारम्भ किया । परन्तु प्रथम संस्करण के प्रकाशित होते ही. दूसरी उलझनें सामने आईं पर पुस्तक हाथों-हाथ घर-घर पहुंची ।
द्वितीय संस्करण का सम्पादन करने की उतनी प्रबल इच्छा न थी, परन्तु अपनी भूल का प्रायश्चित्त करना भी आवश्यक था और इस पुण्य कार्य को ही उसके लिये उपयुक्त समझकर किया ।
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पूज्य वर्गीजी के व्यक्तित्व और विद्वत्ता के सम्बन्ध में “वर्णीवाणी” ही प्रमाण है। मुझ जैसे विद्यार्थी का कुछ भी कहना सूर्य को दीपक दिखाना है ।. सर्वप्रथम मैं अपने साहित्य-गुरु श्रीमान् पूज्य पं० पन्नालालजी साहित्याचार्य सागर, श्रीमान् पूज्य पं० गोरेलालजी शास्त्री द्रोणगिरि एवं श्रीमान् पूज्य पं० भोलानाथजी पाण्डेय साहित्याचार्य काशी का आभार मानता हूँ. जिन्होंने प्रारम्भ से ही साहित्य की शिक्षा देकर मुझे इस योग्य बनाया ।
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