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है कि जिससे हम उस सत्य का प्रयोग भी नहीं कर सके हैं। कारण यह है कि हममें अबुद्धि और अविवेक का विष स्वार्थता के सहयोग से इतना बढ़ गया है कि आपके व किसी के उसके विपरीत बचन एक केवल जलते हुए लाल लोहे के तवे पर पानी के बूंद जैसे हैं। आप कभी निराश न होवें। हमने भी आप ही जैसे प्रयास किये थे, पर वे ऐसे दबाये गये कि जिससे अब हम उस क्षेत्र में कहीं फटक भी नहीं सकते हैं। हम जानते थे कि अभी उस क्षेत्र में हम कुछ बदल सकते हैं व फैले हुए वातावरण को लौट सकते हैं पर कुछ असमञ्जस ने हमें वहाँ रोक रखा।
__ "अगर आप श्री वर्णीजी के आगमन के समय हमारे भाषण में उपस्थित होंगे तो स्मरण होगा कि मैंने समाज की उन्नति का केवल एक ही दृष्टिकोण रखा था व तब मेरा शिक्षा देने के विचार से यह मतलब था--
"हमारी शिक्षा एकदम आधुनिक हो जो कि पाश्चाय तरीकों पर हो, पर साथ-साथ हमारा सभ्यता, हमारी संस्कृति व हमारा चारित्र हमारा ही हो।
“जब तक हम इसे सफल बनाने के मार्ग में आगे नहीं बढ़ते, तब तक हमारा उत्थान नहीं होता। मैं तो यहाँ तक कहता हूँ कि धार्मिक क्षेत्र में भी तब तक हम अपने को नहीं उठा सकते । सामाजिक व्यापारिक राजनैतिक व दूसरे क्षेत्रों की तो कोई बात ही नहीं। ___“समाज इस वक्त बराबर पंडितों के हाथ है व उनसे ही प्रार्थना है कि बे इस पर लक्ष्य दें। हमें आशा तो नहीं कि वे इस प्रकार ध्यान ही देंगे पर अगर आप अपने कुछ साथियों द्वारा इसका बीड़ा उठाएँ तो कार्य को सफल बनाने का उत्तरदायित्व मैं ले सकता हूँ। सिर्फ बात यह है कि कार्य गम्भीर है व गम्भीरता से करना होगा । व श्रापको ज्यादा से ज्यादा ज्ञान उपार्जन में लग जाना होगा। तब हम देखेंगे कि कार्य सफल होगा। यह भी खयाल रखें कि हर एक कार्य आदर्श बिना रखे नहीं होता। कुछ भी हो वर्णीजी को आदर्श आपको बनाना ही होगा वे बराबर आपके कार्य में
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