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लोक प्रतिष्ठा
१. संसार में प्रतिष्ठा कोई वस्तु नहीं, इसकी इच्छा ही मिथ्या है। जो मनुष्य संसार बन्धन को छेदना चाहते हैं वे लोकप्रतिष्ठा को कोई वस्तु ही नहीं समझते।
२. केवल लोकप्रतिष्ठा के लिये जो कार्य किया जाता है वह अपयश का कारण और परिणाम में भयङ्कर होता है।
३. संसार में जो मनुष्य प्रतिष्ठा का लिप्सु होता है वह कदापि आत्म कार्य में सफल नहीं होता। क्योंकि जो आत्मा पर पदार्थों से सम्बन्ध रखता है वह नियम से आत्मीय उद्देश्य से च्युत हो जाता है।
४. लोकप्रतिष्ठा की लिप्सा ने इस आत्मा को इतना मलिन कर रखा है कि वह आत्म गौरव पाने की चेष्टा ही नहीं कर पाता। ___५. लोकप्रतिष्ठा का लोभी आत्मप्रतिष्ठा का अधिकारी नहीं । लोक में प्रतिष्ठा उसी की होती हैं जिसने अपने पन को भुला दिया।
६. लोकप्रतिष्ठा की इच्छा करना अवनति के पथपर जाने की चेष्टा है। ___७. संसार में वही मनुष्य बड़े बन सके जिन्होंने लोकप्रतिष्ठा को इच्छा न कर जन हित के बड़े से बड़े कार्यों को अपना कर्तव्य समझ कर किया।
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