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वर्णी-वाशी
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कार पढ़कर "आतम के अहित विषय कषाय, इनमें मेरी परिणति न जाय” इस भावना को ही दृढ़ करना चाहिए।
८. अनेक यत्न करने पर भी मन की चञ्चलता का निग्रह नहीं होता । आभ्यान्तर कषाय का जाना कितना विषम है ! बाह्य कारणों के अभाव होने पर भी उसका अभाव होना अति दुष्कर है। ___६. विकल्पों का अभाव कषाय के अभाव में ही होता है।
१०. बन्ध का कारण कपाय वासना है, विकल्प नहीं ।
११. मन की चञ्चलता में मुख्य कारण कषायों की तीव्रता है और स्थिरता में कषाय की कृशता है। इसलिये काय की कृशता को गौण कर कषाय की कृशता पर ध्यान दो ।
१२. जिस त्याग में कषाय है वह शान्ति का मार्ग नहीं ।
१३. जब तक कषायों की वासना का निरोध न हो तब तक वचनयोग और मनोयोग का निरोध होना असम्भव है।
१४. शान्ति न आने का कारण कषाय का सद्भाव है और शान्ति पाने का कारण कषाय का अभाव है। उपयोग न शान्ति का कारण है और न अशान्ति का ही।
१५, कषाय कलुषता को कालिमा से जिनका आत्मा मलिन हो रहा है भला उनके ऊपर धर्म का रंग कैसे चढ़ सकता है ?
१६. कषाय के अस्तित्व में चाहे निर्जन बन में रहो चाहे पेरिस जैसे शहर में रहो सर्वत्र हो आपत्ति है। यही कारण है कि माही दिगम्बर भी मोक्षमार्ग से पराङमुख है और निर्मोही गृहस्थ मोक्ष मार्ग के सन्मुख है।
१५. जिस तरह पानी विलोड़ने से मक्खन की उपलब्धि
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