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कषाय
१. कषाय के वशीभूत होकर ही सभी उपद्रव होते हैं।
२. कषाय के आवेग में बड़े बड़े काम होते हैं । जो न हो जाय सो थोड़ा। इसके चक्कर में बड़े बड़े व्यक्ति आत्महित तक की अवहेलना कर देते हैं।
३. सबसे प्रबल माया कषाय है, इसको जीतना अति कठिन है।
४. कहीं भी जाओ कषाय की प्रचुरता नष्ट हुए बिना शान्ति नहीं मिल सकती।
५. कषाय अनादि काल से स्वाभाविक पद को बाधक है, क्योंकि इसके सद्भाव में आत्मा कलुषित हो जाता है, जिससे वह मद्यपायी की तरह नाना प्रकार की विपरीत चेष्टाओं द्वारा अनन्त संसार की यातनाओं का ही भोक्ता बना रहता है। परन्तु जब कषायों की निर्मलता हो जाती है तब अनायास हो आत्मा अपने स्वभाविक पद का स्वामी हो जाता है।
६. चञ्चलता का अन्तरङ्ग कारण कषाय है।
७. “संसार असार है, कोई किसी का नहीं" यह तो साधारण जीवों के लिये उपदेश है किन्तु जिनकी बुद्धि निर्मल है और जो भावज्ञानी हैं उन्हे तो प्रवचनसार का चारित्र-अधि
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