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वर्णो-वाणी
८. रसनेन्द्रिय की प्रबलता भव गर्त में पतन का कारण है।
६. जो घ्राणेन्द्रिय के दास हैं, लौकिक इत्र तेल फूल आदि की सुगन्ध के आदी हैं उन्हें आत्मोन्नति कुसुम की सुखावह गन्ध नहीं आ सकती।
१०. जो पर का रूप देखने में लगे रहेंगे उन्हें अपना रूप नहीं दिख सकता।
११. सुखी संसार का गाना सुनने की अपेक्षा दुखी दुनिया का रोना सुनना कहीं अच्छा है।
१२. स्पर्शन इन्द्रिय के क्षणिक सुख का लोलुपी हाथी कागज की हस्तिनी के लिए गड्ढे में जा गिरता है ! रसना इन्द्रिय की लोलुप मछली जरा से आटे के लोभ में लोह को कँटीली वंशी को चवाकर अपनी जीभ छिदाकर तड़प तड़प कर जान दे देती है ! ब्राणेन्द्रिय का दास सुगन्धि का लालची भौरा सूर्यास्त के समय कमल में बन्द होकर अपने प्राण गँवा बैठता है! चक्षुइंद्रिय के विषय सुख का दास पतंगा बार बार जल जाने पर भी दोपक पर ही आकर जल मरता है ! और कर्ण इन्द्रिय का दास मृग बहेलिये के हिंसक स्वभाव को जानते हुए भी उसकी वंशी की मधुर तान में आकर वाण से मारा जाता है ! एक एक इन्द्रिय के विषय सुख के लोलुपियों की जब यह दशा होती है तब पाँचों हो इन्द्रियों के विषय सुख के लोलुपियों की क्या दशा होती होगी ? यह प्रत्येक भुक्त भोगी या प्रत्यक्ष दर्शी ही जानता है।
१३. इन्द्रियों की दासता से जो मुक्त हुआ वही महान है।
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