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________________ वर्णी-वाणी १५६ हुए रागद्वेष त्यागरूप महामन्त्र का निरन्तर स्मरण करो यही सच्ची और अनुभूत रामबाण औषधि है। ५. वास्तव में शारीरिक रोग दुःखदायी नहीं। हमारा शरीर के साथ जो ममत्वभाव है वही वेदना की मूल जड़ है इसके दूर करने के अनेक उपाय हैं पर दो उपाय अत्युत्तम हैं १-एकत्व भावना ( जीव अकेला आया अकेला जयगा) २–अन्यत्व भावना (अन्य पदार्थ मुझसे भिन्न हैं) । इनमें एक तो विधिरूप है और दूसरा निषेधरूप है। वास्तव में विधि और निषेध का परिचय हो जाना ही सम्यक्बोध है। ६. जिसको हमने पर्याय भर रोग जाना और जिसके लिये दुनियाँ के वैद्य और हकीमों को नब्ज दिखाया, उनके लिखे बने या पिसे पदार्थों का सेवन किया और कर रहे हैं,वह वास्तव रोग नहीं है । जो रोग है उसको न जाना और न जानने की चेष्टा को और न उस रोग के वैद्यों द्वारा निर्दिष्ट रामबाण औषधि का प्रयोग किया । उस रोग के मिट जाने से यह रोग सहज हो मिट जाता है वह रोग है राग और उसके सद्वैद्य हैं वीतराग जिन । उनकी बताई औषधि है १ समता, २ परपदार्थों से ममत्व का त्याग और ३ तत्वज्ञान । यदि इस त्रिफला को शान्तिरस के साथ सेवन कर कषाय जैसो कटु और मोह जैसी खट्टी वस्तुओं का परहेज किया जाय तो इससे बढ़कर रामबाण औषधि और कोई नहीं हो सकती। ७. राग रोग मिटाने को यही सच्ची रामबाण औषधि है कि-प्रत्येक विषय जो शान्ति के बावक हैं उनका परित्याग करो, चित्त से उनका विकल्प मेंटो, सब जो वों के साथ अन्त Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003997
Book TitleVarni Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1950
Total Pages380
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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