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रामबाण औषधियाँ
१. सबसे उत्तम औषधि मन की शुद्धता है, दूसरी औषधि ब्रह्मचर्य की रक्षा है, तीसरी औषधि शुद्ध भोजन है ।
२. यदि भवभ्रमण रोग से बचना चाहो तो सब औषधियों के विकल्प जाल को छोड़ ऐसी भावना भाओ कि यह पर्याय विजातीय दो द्रव्यों के सम्बन्ध से निष्पन्न हुई है फिर भी परिणमन दो द्रव्यों का पृथक-पृथक ही है। सुधाहरिद्रावत् एक रंग नहीं हो गया अतः जो भी परिणमन इन्द्रिय गोचर है वह पौद्गलिक ही है। इसमें सन्देह नहीं कि हम मोही जीव शरोर की व्याधि का आत्मा में अवबोध होने से उसे अपना मान लेते हैं, यही ममकार संसार का विधाता है।
३. कभी अपने आपको रोगी मत समझो । जो कुछ चारित्रमोह से अनुमति क्रिया हो उसके कर्ता मत बनो । उसकी निन्दा करते हुए उसे मोह की महिमा जानकर नाश करने करने का सतत प्रयत्न करते रहो।
४. जन्म भर स्वाध्याय करनेवाला अपने को रोगी समझ सब की तरह विलापादिक करे यह शोभास्पद नहीं। होना यह चाहिये कि अपने को सनत्कुमार चक्रवर्ती की तरह दृढ़ बनाओ। "व्याधि का मन्दिर शरीर है न कि आत्मा" ऐसी श्रद्धा करते
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