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________________ १५३ विनय सिर झुकाकर उसका उपकार नहीं करते बल्कि अपने हृद्य से मान रूपो शत्रु को हटाकर अपने आपका उपकार करते हैं। किसी ने किसो कि बात मान ली,उसे हाथ जोड़ लिये,सिर झुका दिया,इतने से ही वह प्रसन्न हो जाता है और कहता है कि इसने मान रख लिया । तुम्हारा मान क्या रख लिया; अपना अभिमान खो दिया, अपने हृदय में जो अहंकार था उसने उसे अपने शरीर की क्रिया से दूर कर दिया। ५. विनय के सामने सब सुख धूल हैं । इससे अत्मा का महान् गुण जागृत होता है, विवेक शक्ति जागृत होती है। आज कल लोगों में विनय की कमी है इसलिये हर एक बात में क्यों ? क्यों ? करने लगते हैं। इसका अभिप्राय यही हैं कि उनमें श्रद्धा के न होने से विनय नहीं है अतः हर एक बात में कुतर्क उठा करते हैं। ____ एक आदमी को क्यों"का रोग हो गया,जिससे बेचारा बड़ा परेशान हुआ। पूछने पर किसीने उसे सलाह दो कि तू इसे किसी को बेच डाल भले ही सौ पचास रुपये लग जाय । बीमार आदमी इस विचार में पड़ा कि यह रोग किसे बेचा जाय। किसीने सलाह दो स्कूल के लड़के बड़े चालाक होते हैं अतः५०) देकर किसी लड़के को यह रोग दे दो । उसने ऐसा ही किया । एक लड़के ने ५०)लेकर उसका वह "क्यों” रोग ले,लिया सब लड़कों ने मिल कर ५०) को मिठाई खाई । जब लड़का मास्टर के पास पहुँचा, मास्टर ने कहा-"कल का पाठ सुनाया" लड़के ने कहा क्यों ? मास्टर ने कान पकड़ कर लड़के को स्कूल के बाहर निकाल दिया । लड़के ने सोचा कि यह क्यों रोग तो बड़ा बुरा है । वह उसको वापिस कर आया । उसने सोचा चलो अबकी बार यह अस्पताल के किसी मरीज को बेच दिया जाय तो अच्छा है Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003997
Book TitleVarni Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1950
Total Pages380
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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